खो गया जाने कहाँ-मोहर १९५९
ऐसे संगीतकार थे जिनसे शायद ही कोई संगीतकार होगा
उस काले पीले(श्वेत श्याम) युग का जिसने गीत ना गवाना
चाहा होगा. उनका योगदान हिंदी और बंगाली सिनेमा दोनों
के लिए अमूल्य है.
मदन मोहन ने फिल्म मोहर के गीत के लिए एक ऐसी धुन
बनाई जो विशेष रूप से हेमंत कुमार के लिए बनाई सी प्रतीत
होती है. यह राजेंद्र कृष्ण का लिखा गीत है.
गीत के बोल:
आ आ आ आ आ
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
मुद्दतें गुज़री मगर याद है वो दास्ताँ
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
दाग़ मिट सकते नहीं दिल से तेरी याद के
इस तरह भूले कोई गुज़रे बहारों का समा
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
खो गया जाने कहाँ
आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ
ज़िंदगी वीरान है एक सेहरा की तरह
ज़िंदगी वीरान है एक सेहरा की तरह
दिल मेरा बेताब है मौज-ए-दरिया की तरह
दिल मेरा बेताब है मौज-ए-दरिया की तरह
ग़म की मैं तसवीर हूँ आ आ आ आ
ग़म की मैं तसवीर हूँ बेकसी की दास्ताँ
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
खो गया जाने कहाँ
क़ाफ़िले आते रहे क़ाफ़िले जाते रहे
मेरी मंज़िल का मगर ना मिला मुझको निशान
खो गया जाने कहाँ आरज़ूओं का जहाँ
मुद्दतें गुज़री मगर याद है वो दास्ताँ
खो गया जाने कहाँ
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Kho gaya jaane kahan-Mohar 1959
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