Jul 20, 2017

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं-पिंजर २००३

इस ग़ज़ल में एक सन्देश है मगर आजकल उपदेश और सन्देश
सुनता कौन है. वो जो टुच्च लोगों द्वारा उच्च वचन व्हाट्स एप
नाम के सरदर्द द्वारा प्रेषित किये जाते हैं वो भी जनता ने पढ़ना
बंद कर दिया है. ऐसे और भी एप हैं जो कभी कभी Ape लगने
लग जाते हैं मानो चिढा रहे हों-तुम नेट ऑन करो हम तुम्हारे
सर पर कूदेंगे.

आवाज़ में सिलवट गुलज़ार के अलावा कौन सोच सकता है?




हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते
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Haath chhoote bhi to rishte-Jagjit Singh Ghazal

Artist:Urmila Matondkar

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